सावन मास का पहला प्रदोष व्रत है
#SAWAN : आज श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी है। आज सावन मास का पहला प्रदोष व्रत है। इस व्रत के शनिवार को पड़ने से इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। सावन में इसके आने से इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
जानते हैं कि प्रदोष व्रत क्यों किया जाता है और प्रदोष में दोष क्यों है…
प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा की मानें तो दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं का विवाह चंद्र के साथ हुआ था। आपको बता दें कि ये 27 कन्याएं आकाशमंडल में मौजूद 27 नक्षत्र हैं। इनमें से रोहिणी बेहद खूबसूरत थी और चंद्र का स्नेह भी रोहिणी की तरफ ही ज्यादा था। यह स्नेह देख दक्ष की पुत्रियों ने उससे अपना दु:ख व्यक्त किया। दक्ष बहुत क्रोधी स्वभाव के थे। यह सब जानकर उन्होंने चंद्र को क्षय रोग से ग्रस्त होने का श्राप दिया। धीरे-धीरे चंद्र क्षय रोग से ग्रस्त होने लगे और कलाएं भी खत्म होना शुरू हो गईं।
यह देखकर नारद जी ने चंद्र को भगवान शिव का पूजन करने को कहा। दोनों ने मिलकर शिव जी की आराधना की। चंद्र का आखिरी समय चल रहा था। इसी बीच शंकर भगवान ने प्रदोषकाल में उन्हें जीवनदान दिया। साथ ही उन्हें अपने मस्तक पर धारण भी किया। इसके बाद धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे। वहीं, पू्र्णमासी के समय पूर्ण चंद्र की तरह प्रकट हुए।
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जानें क्यों किया जाता है प्रदोष व्रत
ऐसे में देखा जाए तो प्रदोष में दोष यही था कि चंद्र ने मृत्यु की भांती कष्टों को भोगा था। यह व्रत इसलिए किया जाता है क्योंकि शिव जी ने उन्हें कष्टों से मुक्ति दिलाई और उन्हें जीवनदान दिया। इस व्रत में हमें भोलेनाथ की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्युतुल्य चंद्र को मस्तक पर धारण किया था।
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वहीं, यह भी कहा जाता है जो प्रदोष व्रत शनिवार को आता है वो दंपतियों के लिए काफी महत्व रखता है। जिन दंपतियों को संतान की प्राप्ति की इच्छा होती है उन्हें शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को करना चाहिए। इस व्रत को करने से उत्तम संतान प्राप्त होती है।
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