बच्चों को बचपन से ही सिखाएं अच्छी आदतें
स्वास्थय हमारी आदतों पर निर्भर करता है। यदि आदतें सही है तो हमारी सेहत भी ठीक रहेगी। यदि हमारी आदतें खराब हैं तो किसी भी डॉक्टर के पास जाएं, कैसी भी दवाइयां लें, हमारी सेहत ठीक नहीं हो सकती। यही वजह है कि बच्चों को अच्छी आदतें सिखाई जाएं जिसकी शुरूआत 1 साल की उम्र से ही कर देनी चाहिए। विशेषज्ञ मानते हैं कि 1 साल का होते ही बच्चा अपने आस-पास के माहौल के समझने लगता है तथा हर चीज के प्रति उसकी जिज्ञासा बढ़ जाती है। इस उम्र से ही माता-पिता को ध्यान देने की जरूरत हैं क्योंकि यहीं से बच्चे अच्छी-बुरी आदतों को हमेशा के लिए अपना सकते हैं। बच्चों को अनुशासन तथा आजादी दोनों की मदद से अच्छी आदतें अपनाने में सहायता करनी चाहिए।
खाना
- सबसे पहले बच्चों को खाने की अच्छी आदतें सिखाएं। उन्हें कुदरती रूप से भूख लगती है और महसूस होता है कि कब खाना है और कितना खाना है परंतु वह नहीं समझ सकते हैं कि क्या खाना चाहिए। यह माता-पिता पर निर्भर करता है कि उन्हें क्या खाने को दें जबकि कितना खाना चाहिए तथा कब खाना चाहिए या खाना भी चाहिए या नहीं, यह सब बच्चों पर छोड़ देना चाहिए।
- यदि बच्चा कहता है कि उसे दी गई चीज वह नहीं खाएगा तो मां उसे कहे कि खाने के लिए यही है, खाना है तो खाओ नहीं तो मत खाओ। बच्चा रोता है तो मां उसे दूसरी चीज दे देती है तो वह जान जाएगा कि उसके रोने पर उसे मनचाही चीज मिल जाएगी फिर चाहे वो सेहतमंद न हो।
- दूसरी ओर रोने के बाद भी यदि उसे अपनी मांगी चीज नहीं मिलेगी तो वह समझ जाएगा कि रोने का मां पर कोई असर नहीं होने वाला है। इस तरह इसे सेहतमंद खाने की आदत डाली जा सकती है। जो माता-पिता अपने बच्चों को रोता हुआ नहीं देख सकते, वास्तव में वे उनका ही अहित कर बैठते हैं।
सोना
- बच्चों को सही वक्त पर सुलाना माता-पिता को सबसे कठिन चुनौती लगती है। इसका एक आसान तरीका है कि बच्चे को नींद न आने पर सोने के लिए उस पर जोर न डालें बल्कि उसे खिलौनों से खेलने दें और स्वयं ऐसा दिखाएं कि थकान के कारण आपको नींद आ रही है और आंखे मूद कर लेट जाएं।
- जब बच्चा देखेगा कि सभी सो चुके हैं तो 5 मिनट के अंदर-अंदर वह भी सो जाएगा। हालांकि, इसके लिए धैर्य की जरूरत होगी।
क्षमादान का महत्व
- सेहत का संबंध निजी व्यवहार, सामाजिक संबंधों तथा अध्यात्म से भी है।
- अध्यात्म से अर्थ है कि लोंगो के प्रति प्यार की भावना हो, न कि नफरत। व्यक्ति में लोगों को क्षमा करने की क्षमता भी होनी चाहिए।
- इस मामले में अपने व्यवहार से माता-पिता को बच्चों के समक्ष अच्छा उदाहरण पेश करना चाहिए। बच्चे के लिए आदर्श बनें ताकि वे आपसे अच्छी आदतें सीखें।
गलती करने की आजादी दें
- बच्चों की सुरक्षा की चिंता जायज है परंतु उनकी हर गतिविधि को अपने नियंत्रण में न रखें। उन्हें ऐसी गलतियों की आजादी हो जो अधिक नुकसान न करें।
- हार से डरना नहीं चाहिए क्योंकि हर बार सफलता नहीं मिलती। विश्व का सर्वोत्तम बल्लेबाज भी जीरो पर आऊट हो सकता है। उसे सिखाएं कि अच्छे से प्रयास करना महत्वपूर्ण है परंतु किसी बेहतर के जीतने पर हार स्वीकार भी करनी चाहिए।
स्क्रीन टाइम तय करें
- स्मार्टफोन तथा टी.वी. के जमाने में स्क्रीन के सामने बच्चों का वक्त ज्यादा गुजरने लगा है। 2 से 3 साल तक के बच्चों को स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखें। इसके बाद दिन में केवल आधे घंटे की कड़ी सीमा तय करें और उन्हें बाहर खेलने के लिए उत्साहित करें।
- यदि बच्चा आपकी बात अनसुनी करके रिमोट उठाता है तो दूसरी बार उसे मना न करें, बल्कि तब तक उसका हाथ पकड़े रखें जब तक कि वह रिमोट छोड़ न दें।
- जब आप बच्चे को बार-बार किसी चीज को रोकते हैं तो वह उसे चुनौती मान कर वही काम करने की कोशिश करता है। उसका हाथ पकड़ने पर वह समझ जाएगा कि एक बार मना करने का मतलब है कि उस काम की इजाजत कभी नहीं मिलेंगी।
नहीं का महत्व
- बच्चों को सिखाना बेहद जरूरी है कि वे जिस भी चीज की मांग करें, वह उन्हें मिल जाएगी। फिर चाहे उनके माता-पिता में वह चीज खरीदने की क्षमता ही क्यों न हो।
- माता-पिता कितने भी धनवान हों, बच्चों को सादगी और प्रसन्नता का महत्व सिखाना बहुत जरूरी है। सबसे अच्छा बच्चों को यह समझाना है कि जहां कुछ लोग उनसे अधिक धनवान हैं वहीं कितने ही लोग कितने ही गरीब तथा अभावग्रस्त हैं।
- उनके पास जो कुछ है, उन्हें उसके लिए खुद को सौभाग्यशाली समझना चाहिए। इसी उम्र में जरूरत तथा लालच में समझाना होगा तभी बड़े होकर वे इस बारे सही फैसला ले सकेंगे।