जांच टीम ने दस दिन में विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर परिवहन निदेशक को सौंपी
Arti Pandey
Chandigarh
हरियाणा रोडवेज के करनाल डिपो में हुए फर्जी टिकट घोटाले में महाप्रबंधक समेत चार अधिकारियों का मुख्य हाथ रहा है। परिवहन मुख्यालय की जांच टीम ने दस दिन की गहन छानबीन के बाद अपनी रिपोर्ट सोमवार को निदेशक आरसी बिढान को सौंप दी। सौ से अधिक पन्नों की रिपोर्ट में दस पेज में पूरे घोटाले का निष्कर्ष दिया गया है। डिपो महाप्रबंधक के अलावा ट्रैफिक मैनेजर पर भी फर्जी टिकट घोटाले में संलिप्त होने का आरोप है। सूत्रों के अनुसार जांच अधिकारी ने चारों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश निदेशक से की है। अब निदेशक जांच रिपोर्ट को परिवहन मंत्री कृष्ण लाल पंवार और विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव धनपत सिंह के संज्ञान में लाएंगे। उसके बाद आरोपी अधिकारियों पर कार्रवाई का निर्णय लिया जाएगा।
घोटाले को दबाने की हुई कोशिश
करनाल डिपो का फर्जी टिकट घोटाला खुलने पर पूरे परिवहन विभाग में हड़कंप मच गया था। परिवहन विभाग ने आननफानन में जांच मुख्य लेखा अधिकारी, सीनियर मेकेनिकल इंजीनियर और डिप्टी ट्रांसपोर्ट कंट्रोलर को सौंप दी। इन अधिकारियों ने डिपो में जांच शुरू की और रिकॉर्ड कब्जे में लिया तो मामले को दबाने की पूरी कोशिश की गई। वरिष्ठï जांच अधिकारियों पर घोटाले को रफादफा करने का दबाव बनाया गया। इसकी भनक प्रदेश सरकार को लग गई। जिस पर जांच अधिकारी बदल दिए गए।
वरिष्ठï लेखा अधिकारी ने देर रात तक डाले रखा डेरा
प्रदेश सरकार ने फर्जी टिकट घोटाले की तह तक पहुंचने के लिए परिवहन विभाग की वरिष्ठï लेखा अधिकारी को मामले की जांच सौंपी। उनके साथ छह सदस्यीय टीम भी लगाई गई। उन्हें विशेष निर्देश थे कि घोटाले की तह तक जाना है। उन्होंने जांच शुरू की तो घोटाले में संलिप्त अधिकारियों ने उन्हें भी खूब बरगलाया। बावजूद इसके जांच टीम देर रात तक दस दिन पड़ताल में जुटी रही। रविवार को रात दस बजे जांच टीम अपना काम पूरा कर चंडीगढ़ लौटी।
जांच टीम को ये मिले तथ्य
. नियमों के विरुद्घ जाकर 16 अक्टूबर से दो नवंबर के बीच फर्जी टिकटें छपवाई गईं
. डिपो अपने स्तर पर टिकटें छपवाने केलिए अधिकृत नहीं था
. जितनी फर्जी टिकटें बेची, उनकी पूरी राशि जमा नहीं कराई गई
. फर्जी टिकटों का स्टॉक इन हैंड डिपो में ज्यादा मिला
. टिकटों के प्रिंट में भी अंतर पाया गया
94 लाख से अधिक की टिकटें छपवाई, जमा राशि को लेकर घालमेल
घोटाले में संलिप्त अधिकारियों ने प्राईवेट प्रिंटिंग प्रेस से 94 लाख रुपये की बगैर नंबरों की फर्जी टिकटें छपवाईं। आउटसोर्सिंग पर भर्ती परिचालकों से 18 से 24 अक्टूबर के बीच विभिन्न मार्गों पर इन्हें कटवाया। इसके बाद उसी प्रिंटिंग प्रेस से नंबरों वाली टिकटें छपवाई गईं, जो 2 नवंबर तक उन्हीं परिचालकों से कटवाईं। बगैर नंबरों की जो टिकटें कटवाईं, उनका कैश सरकारी खजाने में जमा ही नहीं किया।
सात महीने बाद शिकायत पर खुलासा
घोटाला 7 महीने तक दबा रहा। इसका खुलासा तब हुआ जब किसी ने लिखित शिकायत परिवहन मुख्यालय में की। शुरुआती छानबीन में पता चला कि बगैर नंबर की बिकी हुई 94 लाख रुपये के टिकटों में से सिर्फ 57 लाख रुपये कैश ही आननफानन में सरकारी खजाने में जमा दिखाया गया, लेकिन बाकी 37 लाख रुपये की न तो टिकटें मिली तथा न ही कैश का पता चला। डिपो प्रशासन ने बची हुई टिकटें तलाशने के लिए जांच कमेटी से एक सप्ताह का समय मांगा। बीते 23 मई को अचानक एक टिकटों से भरा हुआ बोरा डिपो में पौङियों के नीचे एक छोटे कमरे में रखा मिला, जिसकी सूचना मुख्यालय को दी गई। लेकिन इसमें रखी टिकटें पुरानी न होकर तुरंत छपवाई हुई थीं। जिसके कारण डिपो प्रशासन शक के दायरे में आ गया। टिकटें मिलने के बाद कहा गया कि 40 लाख रुपये ही खजाने में जमा हुए हैं। जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में पूरे घोटाले को खोला है।
आधा दर्जन अन्य डिपो में इसी हफ्ते शुरू होगी जांच
परिवहन विभाग की सात सदस्यीय जांच टीम छह अन्य डिपो में इसी हफ्ते से फर्जी टिकट घोटाले की जांच शुरू करने जा रहा है। जिन डिपो को जांच के लिए चुना गया है, उनमें भी बड़े पैमाने पर हड़ताल के दौरान फर्जी टिकटें छपवा कर आउटसोर्सिंग परिचालकों से कटवाई गई हैं। जांच में कई बड़ी मछलियों के बेनकाब होने की संभावना है।