Navratri का समय चल रहा है। इस समय में मां दुर्गा (Maa Durga) के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। इन दिनों में मंत्र जाप से अपने मनोकामनाओं की पूर्ति की जा सकती है। इस समय में पूजा के बाद हवन भी किया जाता है। आपने अक्सर देखा है कि हवन करते समय मंत्र (Mantra) के बाद स्वाहा कहा जाता है। आज हम आपको इसके बारे में ही बताने वाले हैं कि हवन के समय स्वाहा क्यों कहते हैं।
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इसके संदर्भ में देवी भागवत पुराण में एक कथा का वर्णन मिलता है, जो इस प्रकार है…
नारद जी कहते हैं कि सभी धार्मिक कर्मों में हवन के समय स्वाहा देवी, श्राद्ध कर्म में स्वधा देवी तथा यज्ञ आदि में दक्षिणा देवी प्रशस्त मानी गई हैं। सृष्टि के प्रारंभ में देवता गण ब्रह्मा जी के पास आए तथा अपने आहार के लिए प्रार्थना करने लगे। उन समय ब्राह्मणों द्वारा अग्नि में जो हवि प्रदान की जाती थी, उसे देवता प्राप्त नहीं कर पाते थे। इस प्रकार वे आहार से वंचित हो जाते थे।
देवताओं की यह प्रार्थना सुनकर ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण के आदेश के अनुसार मूलप्रकृति भगवती की आराधना की। इसके फलस्वरूप स्वाहा देवी मूलप्रकृति की कला से प्रकट हो गईं। ब्रह्मा जी ने उनसे प्रार्थना की कि आप अग्नि की परम सुंदर दाहिका शक्ति हो जाइए क्योंकि अग्निदेव आहुतियों को भस्म करने में समर्थ नहीं हैं।
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स्वाहा देवी ने इसे स्वीकार नहीं किया तथा वे श्रीकृष्ण की उपासना में लीन हो गईं। स्वाहा देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि वराहकल्प में तुम मेरी भार्या बनोगी। इस समय तुम दाहिका शक्ति के रूप में अग्नि देव की मनोहर पत्नी बनो। इस प्रकार स्वाहा देवी का पाणिग्रहण अग्नि से हो गया। इसके बाद से ही अग्नि में हवन करने पर मंत्र के अंत में स्वाहा शब्द जोड़कर मंत्रोच्चारण करने पर देवताओं को आहुतियां मिलने लगीं और वे संतुष्ट हो गए।
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