सनातन परंपरा (Sanatana Dharma) में किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य को शुरू करने से पहले शुभ मुहूर्त पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त के दौरान किए गए कार्य से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है। यह परंपरा आज से नहीं बल्कि पौराणिक काल (Mythical Period) से चली आ रही है।
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हिंदू धर्म में किसी भी महत्वपूर्ण कार्य जैसे- मुंडन, उपनयन, विवाह, गृह प्रवेश या नामकरण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त को अवश्य देखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में कोई भी कार्य शुरू करने से और समाप्त करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं और जीवन में आ रही कई प्रकार की समस्याएं भी समाप्त हो जाती है। शुभ मुहूर्त को जानने के लिए ज्योतिष जानकार या पंडितों की सहायता जरूर ली जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ज्योतिष गणना के द्वारा बताए गए शुभ मुहूर्त ही कार्य के लिए सिद्ध मानी गई है। शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि अशुभ समय में कोई व्यक्ति मंगल कार्य करता है तो उसे जीवन में कई प्रकार के समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
पांच हैं विशेष अंग
वैदिक पंचांग में 5 विशेष अंगो का वर्णन किया गया है। पांच विशेष अंग हैं- नक्षत्र, तिथि, योग, करण और वार। इन पांच अंगों के सहयोग से निकाला गया शुभ समय ही शुभ मुहूर्त कहलाती है। जिसे किसी भी मांगलिक कार्य के लिए विशेष माना जाता है।
नक्षत्र
पंचांग का पहला नक्षत्र है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार 27 प्रकार के नक्षत्र होते हैं और मुहूर्त निकालते समय 28वां नक्षत्र भी गिना जाता है, जिसे अभिजीत नक्षत्र कहा गया है। किसी भी विशेष कार्य को करते समय इन नक्षत्रों को विशेष रूप से देखा जाता है।
तिथि
पंचांग का दूसरा विशेष अंग तिथि है, जिसके 16 प्रकार होते हैं। इनमें पूर्णिमा और अमावस्या दो प्रमुख तिथियां है। यह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष को बांटती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या और पूर्णिमा के बीच की अवधि को शुक्ल पक्ष कहा जाता है और पूर्णिमा व अमावस्या के बीच की अवधि को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि किसी भी विशेष कार्य के लिए कृष्ण पक्ष का समय अच्छा नहीं होता है। इसलिए ज्योतिष विद्वान अधिकांश शुभ मुहूर्त शुक्ल पक्ष के समय के दौरान ही निकालते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कृष्ण पक्ष के दौरान चंद्रमा की शक्तियां कमजोर हो जाती है। जो किसी भी मांगलिक कार्य के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है।
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योग
पंचांग का तीसरा और अहम अंग योग है। बता दें कि ज्योतिष शास्त्र में 27 प्रकार के योग का वर्णन किया गया है। यह सभी योग व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। साथ ही ज्योतिष में बताए गए शुभ योग के निर्माण से व्यक्ति को कई प्रकार की सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं। जिस तरह गुरु पुष्य योग के दौरान खरीदारी करने से व्यक्ति को जीवन में धन एवं समृद्धि की प्राप्त होती है। ठीक उसी प्रकार ध्रुव, सिद्धि इत्यादि योग के निर्माण से भी जीवन में विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं।
करण
पंचांग का चौथा महत्वपूर्ण अंग करण है। यह तिथि के आधे भाग को कहा जाता है। बता दें कि मुख्य रूप से 11 प्रकार के करण होते हैं। इनमें से चार स्थिर होते हैं और सात अपनी चाल बदलते रहते हैं। इनके निर्माण से भी व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
वार
पंचांग का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण अंग वार को कहा गया है। बता दें कि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच की अवधि को वार कहा गया है। रविवार, सोमवार, मंगलवार इत्यादि यह सभी सात प्रकार के वार होते हैं। जिनमें से सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को सबसे शुभ माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन की गई पूजा-पाठ से देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
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डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है