असुरों के गुरु शुक्राचार्य से जुड़ी है घटना
हिन्दू धर्म में शुक्रवार का दिन मां आदिशक्ति यानी दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए निर्धारित किया गया है। इस दिन विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा की जाती है, जिस पर प्रसन्न होकर मां दु्र्गा अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और संकटों से उनकी रक्षा करती हैं। आखिर शुक्रवार के दिन ही मां दुर्गा की पूजा का विधान क्यों है, इसको जानने के लिए हमें असुरों के गुरु शुक्राचार्य से जुड़ी इस घटना के बारे में जानना होगा।
देवता और असुरों में जब संग्राम छिड़ा था, तब देवता जिस भी असुर का वध करते थे, उनके गुरु शुक्राचार्य मृत संजीवनी मंत्र की मदद से उनको पुनर्जीवित कर देते थे। उनके ऐसा करने से असुरों को एक तरह से अमरत्व प्राप्त हो गया था। देवताओं ने अपनी इस चिंता से देवों के देव महादेव को अवगत कराया।
संजीवनी मंत्र को किया प्रभावहीन
देवताओं के अनुरोध पर आदिशक्ति मां दुर्गा ने अपने तपोबल से असुरों के गुरु शुक्राचार्य के मृत संजीवनी मंत्र के प्रभाव को खत्म कर दिया। ऐसा होने से असुरों की शक्ति कम पड़ने लगी और शुक्राचार्य भी असहाय हो गए। उनको अपनी गलती का एहसास हुआ।
शुक्राचार्य भगवान शिव के परम भक्त थे, उन्होंने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर संजीवनी मंत्र के प्रभावहीन होने की बात बताई। भगवान शिव के आश्वासन पर मां दुर्गा ने शुक्राचार्य को प्रभावशाली संजीवनी मंत्र वापस कर दिया।
केवल मां दुर्गा से ही डरते हैं
शुक्राचार्य अपनी सिद्धियों और राहु-केतु जैसे शिष्यों के कारण बेहद ही शक्तिशाली हैं, शक्ति के कारण उनमें घमंड भी था। लेकिन मां दुर्गा के प्रभाव से वे डर गए। ज्योतिष शास्त्र में भी शुक्र ग्रह का काट मां दुर्गा को ही बताया गया है। मां दुर्गा के भय से उन्होंने अपना दिन उनकी पूजा को समर्पित कर दिया। इसके बाद से ही शुक्रवार के दिन मां दुर्गा की अराधना होने लगी।
संतोषी और लक्ष्मी माता की भी होती है पूजा
शुक्रवार के दिन को संतोषी मां का दिन भी माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी के साथ मां दुर्गा की पूजा भी की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन घर की महिलाएं पूजा करती है तो ये शुभ होता है। घर धन-धान्य से भर जाता है।