वट यानी बरगद के वृक्ष का विधिवत पूजन
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, प्रत्येक वर्ष के ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत एवं पूजन किया जाता है। इस वर्ष यह वट सावित्री व्रत कल शुक्रवार को पड़ रहा है। वहीं, शुक्रवार को शनि जयंती भी है। इसमें वट यानी बरगद के वृक्ष का विधिवत पूजन कर 11, 21 या 108 परिक्रमा करते हुए महिलाएं भगवान विष्णु एवं यम देव को समर्पित यह पूजन अपने सौभाग्य को अखण्ड और अक्षुण्य बनाए रखने की कामना से करती हैं।
शोभन योग में व्रत
ज्योतिष गणना के अनुसार, इस वर्ष यह पर्व 22 मई दिन शुक्रवार को कृतिका नक्षत्र और शोभन योग में पड़ रहा है, जो ज्योतिषीय गणना के अनुसार उत्तम योग है। ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का प्रारंभ 21 मई दिन गुरुवार को रात्रि 09 बजकर 35 मिनट पर हो रहा है, जो 22 मई को रात्रि 11 बजकर 08 मिनट तक रहेगी।
मंत्र
नीचे दिए गए मंत्र को पढ़ते हुए परिक्रमा करना श्रेयस्कर होता है-
“यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च।
तानि सर्वानि वीनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे।।”
वट सावित्री व्रत का महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, महासती सावित्री ने अपने पति सत्यवान को इसी व्रत-पूजा के प्रभाव से यम-लोक से पुन: पृथ्वी पर ले आई थीं।
शनि जयंती 2020
इसी ज्येष्ठ अमावस्या को भगवान शनि देव की उत्पत्ति भी वर्णित है। अतः इसी दिन शनि-जयंती भी मनाई जाती है। शनिदेव चूँकि यमदेव के बड़े भाई हैं, अतः सुख-समृद्धि एवं दीर्घायु की कामना से शनिदेव को इस मन्त्र का पाठ करते हुए प्रणाम कर प्रसन्न करना चाहिए।
शनि मंत्र
“नीलांजन समाभासम रविपुत्रम यमाग्रजम।
छाया-मार्तण्ड सम्भूतम तम नमामि शनैश्चरम।।
पूजनोपरान्त वट-देव की इस मंत्र से प्रार्थना करें-
“सौभाग्यम शुभदम चैव आरोग्य सुख वर्धनम।
पुत्र पौत्रादिभिरयुक्ता वट पूजा करोम्यहम।।”